प्रदेश में सरकारी स्कूलो के हाल बेहाल है खासकर ग्रामीण अंचल में जहां अधिकांश स्कूलों में एक बार दो शिक्षकों के हवाले 100 से अधिक बच्चे कक्षा की संख्या 5 इसमें भी एक शिक्षक स्कूल की नित्य नई जानकारी संकुल प्रभारी ऑफिस आदि कार्यालयों में जानकारी रिपोर्ट देने में लगा रहता है वहीं सरकारी स्कूलों के बदतर हालात पिछले 15 साल में अंधाधुंध भारतीय जनता पार्टी कार्यकर्ताओं की धरती से हुई है नौकरी में लेते समय सभी नियम कानून कायदे तांक पर रखकर की गई जो अपनी मर्जी के राजा है नौकरी में लेते समय की गई लापरवाही का परिणाम शिक्षक कम राजनेता के ऊपर निर्भर करता है कि उसे स्कूल जाना है या नहीं स्वयं तय करता है पर सरकारी उपस्थिति रजिस्टर में उपस्थिति सो प्रतिशत वह भी नियत समय पर जबकि स्कूलों में जब हमने बच्चों से शिक्षक के आने-जाने का पूछा तो हकीकत कुछ और ही थी कई शिक्षक स्कूल में पदस्थ पर बच्चों ने कभी देखा ही नहीं जबकि प्रदेश शासन ने शिक्षा को लेकर जिला तहसील स्तर के साथ संकुल बनाए हैं जिसके पास स्कूल की जांच पड़ताल का जिम्मा है वह भी राजनीति चलती है इसके चलते शासन के आदेशों की कई बार धज्जियां उड़ती है कागजों में टेबल पर सब कुछ हो जाता है शिक्षक इमानदारी में से स्कूल जाता है या नहीं इसको कोई देखने सुनने और समझने को कोई भी अधिकारी तैयार नहीं है थोड़ा कुछ इसकी शिकायत की गई तो औपचारिक ज्ञान सब सही पाया शिकायत गलत है रिकॉर्ड में फाइल हो जाती है सरकारी स्कूलों में वही पब्लिक स्कूलों में सरकारी स्कूल के शिक्षक के वेतन का एक हिस्सा भी नहीं मिलता पर वहां शिक्षा का किताबी ज्ञान सामान्य से बेहतर है ऊंचे दाम की के पकवान वाली कहावत यहां देखने को मिलती है नानी पब्लिक स्कूल के छात्र छात्रा से अंको मे 87 लिखो एक भी छात्र छात्राओं ने नहीं लिख सके इसी अंक को हिंदी शब्दों में लिखने का कहा गया तो उत्तर सुननी बटा सन्नाटा था जब उनसे उनका नाम पूछा नाम तो सही बताया पर जब माता-पिता का नाम पूछा गुरु का नाम पूछा तो उनके नाम के आगे पीछे सम्मान सूचक शब्दों का आभाव था। इन पब्लिक स्कूलों की फिश हजारों में पर बच्चों का बौद्धिक ज्ञान सुन्नी बटा सन्नाटा है इसके बाद भी दिन दूना रात चौगुना कमा रहे हैं इतना ही नहीं शासन के मापदंडों में सही मायनों में जाच होतो सो स्कूलों में से एक स्कूल खरा होगा। याने यहां पर भी गड़बड़झाला को उजागर करती यह रिपोर्ट प्रदेश शासन और समाज के ठेकेदारों कि कड़वा सच बयान करती है।
शिक्षा दान महादान और आज शिक्षा दान लूटपाट की खदान बन चुका है चाहे सरकार करें या और कोई सब जगह लूट का धंधा चल रहा है जो हजारों रुपया प्रति माह वेतन लेते हैं किंतु अपनी जवाबदारी को कैसे निभाते हैं इसका हमने देहाती स्कूलों का भ्रमण किया जिसमें पाया कि स्कूल का समय वहां शिक्षक के द्वारा निर्धारित होता है जबकि उसी शाला भवन यह दीवार पर लिखा होता है शाला खुलने का समय सुबह 10:30 से दोपहर 4:00 बजे तक पर 3:00 बजे ही शाला बंद हो जाती है खुलने के बाद बच्चों से जब पूछा तो बच्चों ने 11:00 बजे के बाद खुलने की बात कही कुछ ने तो 12:00 बजे तक की बात भी कह दी। जो स्कूल जिला या तहसील के मुख्य सड़क से लगे हुए हैं वहां पर स्कूल खुलने और बंद होने का समय कुछ हद तक सही मिला पर देहाती क्षेत्र में स्कूल समय में ताले पड़े हुए दिखे जब हमने स्कूल के आस-पास खड़े बच्चों से पूछा तो उन्होंने जवाब दिया कि स्कूल तो बहुत देर पहले ही बंद हो चुका है और अभी 4:00 नहीं बजे इससे हम यहीं पर खेल रहे हैं बच्चों ने तो यहां तक भी कहा कि अगर कोई पूछने आए तो कह देना सर अभी गए हैं ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में महिला शिक्षक की कहानी हो रहे हैं स्कूल समय में स्वेटर बुनना या कोई अन्य काम करते रहना होता है बच्चों को बोर्ड पर कुछ लिखकर अभ्यास दे दिया जाता है बच्चे उसकी नकल करते रहते हैं और हो गई पढ़ाई और स्कूल का समय इस तरह-तरह कई स्कूलों के हालात हमने आंखों से देखा जब मैडम से इस संबंध में पूछताछ की गई तो मैडम का उत्तर था कि फुर्सत के समय में थोड़ा बहुत काम कर लेते हैं यह स्थिति प्राइमरी से लेकर मिडिल स्कूल तक हमें देखने को मिली हमने बच्चों के पढ़ाई को लेकर बच्चों से कुछ प्रश्न किए तो चोक पड़े। महंगी फीस का स्कूल कक्षा 11 की छात्रा से हमने पूछा 67 लिखो एक भी छात्र छात्रा ने सही रूप से नहीं लिखा पूरी क्लास में एक भी छात्र छात्राओं ने इसका सही जवाब नहीं दिया जब हमने इसी अंक को हिंदी में लिखने के लिए कहा तो भी उत्तर नहीं मैं मिला जब इस प्रश्न का उत्तर हमको इस महंगे स्कूल में नहीं मिला तो हमने कालेज की ओर रुख किया वहां परिसर में कई विद्यार्थी घूम रहे रहे थे उन्हें पेन कागज दे कर वही सवाल पूछे पर जवाब सही नहीं मिले फिर हमने उनसे उनके नाम पूछे अपना नाम तो सही बताया पर माता पिता और प्राचार्य का नाम पूछा गया तो बिना किसी औपचारिक शिष्टाचार और सम्मान के नाम तो बता दिए पर श्री श्रीमान श्रीमती जैसी औपचारिकताओ का कोई उपयोग नहीं लिया इसके बाद विज्ञानं संकाय की कक्षा 12 में प्रवेश किया वहां एक मीटर में कितने फीट एक इंच में कितने सेमी जैसे बुनियादी सवालों पर सन्नाटा पसरा रहा एक भी छात्र उत्तर नहीं दे सका इस पर शिक्षिका से वही सवाल किये गये तो बहुत देर सोचने पर जवाब आये और माता पिता प्राचार्य के नाम पूछने पर उत्तर वैसे ही आये जैसे पूर्व में छात्रों ने दिए थे प्राचार्य से मिलकर इस सम्बन्ध में चर्चा की गयी तो उनका कहना था की " पत्रकार जी ! यह इंग्लिश मीडियम स्कूल है हमारे यहाँ इंग्लिश में ही पढाया जाता है हिंदी में नहीं हमारा परीक्षा परिणाम भी शत-प्रतिशत आता है शिक्षा में हमारा विद्यालय जिले में प्रथम स्थान पर है जब हिंदी का उपयोग नहीं होता तो बच्चे कैसे जवाब दे सकते है आप अंग्रेजी में विषय के प्रश्न करिए सही उत्तर मिलेगा " अपनी राष्ट्रभाषा की इस दशा और देश भविष्य की ऐसी शिक्षा देखकर मन व्यथित हुआ इस तरह प्रमुख शिक्षण संस्थानों की शिक्षा पद्धति और विद्यार्थियों के ज्ञान का स्तर इस पड़ताल में सामने आया इससे आप अनुमान लगा सकते है हमने इस बात का भी पता किया की क्या कभी आला अधिकारियों ने इन विद्यालयों की स्थिति देखि भी या नहीं इसके जवाब में भी नहीं मिला याने पुब्लिक स्कूल में जो चल रहा है चलने दो इस पर शासन या प्रशासन शिक्षा विभाग को कोई लेना देना नहीं है ना ही सरकारी स्कूल में हो रही अनियमित्ताओ पर इनका कोई ध्यान है और यदि इनके संज्ञान में आता भी है तो सेटिंग हो जाती है
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