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महू में बन रहा एशिया का पहला इन्फेंट्री म्यूजियम


महू - कारगिल विजय भारतीय सेना के गौरवशाली इतिहास का एक अहम अध्याय है जिसकी हर इबारत को अब दर्ज किया जा रहा है। भारतीय सेना के पहले इन्फेंट्री म्यूजियम में इसकी तैयारियां जारी हैं। यह इन्फेंट्री म्यूजियम दुनिया में किसी भी देश की पैदल सेना का इतिहास बताने वाला का विश्व का दूसरा और एशिया का पहला संग्रहालय है। इससे पहले अमेरिकी सेना की इन्फेंट्री को समर्पित एक म्यूजियम जॉर्जिया में बनाया गया है। महू में बन रहे इस सैन्य संग्रहालय में भारतीय पैदल सेना का बीते पौने तीन सौ साल का इतिहास दर्ज किया जा रहा है और इसका आखिरी हिस्सा भारतीय सेना की आखिरी लड़ी गई कारगिल जंग के रूप में दर्ज होगा, जिसे संभवत: कारगिल रूम का नाम दिया जाएगा। यहां कारगिल युद्ध में भारतीय थल सेना की बहादुरी को समर्पित बहुत सी निशानियां होंगी। यहां कारगिल युद्ध के साथ, वॉर हीरोज यानी नायकों और महानतम बलिदानियों की तस्वीरें और प्रतिमाएं भी लगाई जाएंगी। भारतीय सेना के बारे में जानने के लिए यह देश का इकलौता स्थान होगा जहां पैदल सेना का इतना लंबा इतिहास दर्ज होगा। इस गौरवशाली इतिहास को मुख्य रूप से सात हिस्सों में बांटा गया है।


- 1746 से 1857 तक 111 साल का इतिहास


- 1858 से पहले विश्व युद्ध तक


- 1919 से दूसरे विश्व युद्ध तक


- 1945 से भारत की आजादी और विभाजन तक का इतिहास


- 1948 से 1962 तक का कालखंड


- 1963 से 1971 तक हुए युद्ध


- 1972 से कारगिल युद्ध तक का सारा इतिहास


(इसके अलावा 2020 तक भारतीय पैदल सेना की उपलब्धियां और यहां हो रहे बदलाव यहां देखने को मिलेंगे। यहां प्लासी, सारगरही, बक्सर जैसे युद्धों की जानकारी भी मिलेगी।)


लहराता है 110 फीट ऊंचा तिरंगा


भारतीय सेना द्वारा इस संग्रहालय को बेहद खूबसूरती से सजाया जा रहा है। संग्रहालय के बाहर जहां 110 फीट ऊंचा तिरंगा लहराता है, वहीं अंदर इस तिरंगे पर जान न्योछावर कर देने वाले बलिदानियों की गाथाएं लिखी हुई हैं। म्यूरल्स और प्रतिमाओं के साथ ही पेंटिंग, यादगार तस्वीरों के रूप में दर्शाया गया है। सेना के बदलते रूप, परिवेश, गणवेश और हथियार यहां हर बारीक जानकारी मिल सकती है। राजाओं की पैदल सेनाएं कैसे एक ध्वज के नीचे आकर भारतीय सेना का हिस्सा बन गईं, इसके दस्तावेज भी देखने को मिलेंगे। भारत के दो फील्ड मार्शल करियप्पा और मानिक शॉ की कांसे की आदमकद प्रतिमाएं भी यहां हैं। महू में म्यूजियम बनाने का काम 2017-2018 में शुरू हुआ था। दो-तीन बार इसके उद्घाटन की योजना भी बनी, लेकिन नहीं हो पाया। सेना के अधिकृत सूत्रों के अनुसार कोई अड़चन नहीं आई तो संभवत: साल के अंत तक आम लोगों के लिए खोल दिया जाएगा।


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