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एक और जिंदगी निगल गया बोरवेल का डेड होल, आखिर कब तक मासूमो को निगलते रहेंगे खुले बोरवेल



सीहोर (ब्यूरो) - 51 घंटे की मशक्कत के बाद सीहोर की सृष्टि को बोरवेल के गड्ढे से निकाला तो लिया गया, लेकिन उसके शरीर में प्राण नहीं थे। रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान ही ढाई साल की सृष्टि दुनिया को अलविदा कह गई। सिर पीटते उसके पिता राहुल कुशवाह पछता रहे हैं। रोते-रोते बस यही कह रहे हैं कि मेरी मति मारी गई थी। उसी समय रस्सी डालकर सृष्टि को खींच लिया होता तो आज मेरी लाड़ली मेरे पास होती। सृष्टि की मां बताती हैं कि वो तो मेरे सामने खेल रही थी। बोरवेल से निकली रेत के ढेर को देखकर आकर्षित हुई और वहां चली गई। मैं बचाने जाती उससे पहले ही वो बोरवेल में गिर चुकी थी।

राहुल बताते हैं कि मंगलवार दोपहर को उनकी मां और पत्नी घर के पिछले हिस्से में काम कर रही थीं। बड़ी बेटी सृष्टि भी उनके आसपास ही खेल रही थी। इसी बीच वह गोपाल कुशवाह के खेत की तरफ चली गई। वहां बोरवेल से निकली रेत और छोटे पत्थरों का ढेर पड़ा हुआ था। वह उसी को देखकर आकर्षित हुई और मौत के गड्ढे में समा गई। जब तक दादी और मां की नजर पड़ती वह बोरवेल में गिर चुकी थी। मां रानी कुशवाह बेटी को गिरता देख दौड़ी, तब तक देर हो चुकी थी। मां का कहना है कि उनकी बच्ची गिरते समय उनको पुकार रही थी। वह पुकार अब भी उनको सुनाई दे रही है। दादी कलावती को पता चला तो उन्होंने शोर मचाना शुरू किया। घर के लोग जुट गए। 10-15 मिनट में गांव से पूरा परिवार और पड़ोसी भी मौके पर पहुंच गए थे।


दूसरे जिलों में काम कर रही मशीनों को आनन-फानन में बुलाया

प्रशासन ने गड्‌ढा खोदने के लिए जेसीबी मशीनों को तुरंत ही काम पर लगा दिया था। 10-12 फीट नीचे काली चट्‌टान होने की आशंका के चलते पोकलेन और ड्रिल मशीनों की जरूरत महसूस हुई। एसडीएम अमन मिश्रा ने सभी संभावित मशीन संचालकों को अपनी मशीन मुंगावली पहुंचाने को कहा। मुंगावली के पड़ोसी रायपुरा गांव के चैन सिंह मेवाड़ा की भी एक पोकलेन बचाव अभियान में लगी थी। मेवाड़ा बताते हैं कि एसडीएम साहब ने उनको मुंगावली सरपंच के जरिए फोन लगवाया था। उस समय मेरी मशीन शाजापुर जिले में चल रही थी। आनन-फानन में वहां का काम रोककर मशीन को वापस बुलाया गया और तब से वह मुंगावली में बचाव दल के हवाले है।


आठ घंटे की मशक्कत के बाद रोबोट ने शव बाहर निकाला

एनडीआरएफ और सेना के उपाय जब सफल नहीं हुए तो बचाव विशेषज्ञों ने गुजरात से बोरवेल रेस्क्यू रोबोट बुलाने का फैसला लिया। मध्यप्रदेश में पहली बार इस रोबोट का उपयोग किया गया था। बातचीत होने के बाद गुजरात से रोबोटमैन महेश अहीर अपने गैजेट के साथ मध्य प्रदेश के लिए रवाना हुए। सीधी उड़ान नहीं मिली तो दिल्ली होकर गुरुवार सुबह भोपाल पहुंचे। वहां से प्रशासन उन्हें सीधे सीहोर के मुंगावली गांव ले गया। बचाव दल से शुरुआती बातचीत में हालात समझने के बाद सुबह 9 बजे से महेश ने काम शुरू किया। सबसे पहले रोबोट को बोरवेल में डालकर स्कैनिंग की गई। उससे मिले डाटा का विश्लेषण कर बचाव की रणनीति बनाई। प्लानिंग पर काम करते इससे पहले आंधी आई फिर बारिश। थोड़ी देर रेस्क्यू ऑपरेशन रुका रहा। बारिश रुक जाने के बाद फिर से बचाव अभियान शुरू हुआ और करीब 5 बजे बच्ची को बाहर खींच लिया गया। बच्ची तो बाहर आ गई लेकिन उसमें प्राण नहीं थे।

जब तक हादसा न हो, तब तक सोया रहता है सिस्टम

सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसएच कपाड़िया, न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की बेंच ने नलकूपों की वजह से होने वाली गंभीर दुर्घटनाओं से बचाने के लिए 6 अगस्त 2010 को एक आदेश पारित किया था। इसमें साफ शब्दों में कुछ दिशा निर्देश तय किए गए हैं। प्रशासन खासकर कलेक्टर पर इसका पालन करवाने की जिम्मेदारी है, लेकिन सरकार ने इसे कभी पूरी तरह से लागू ही नहीं कराया। प्रशासनिक सिस्टम तब तक सोया रहता है जब तक इस तरह का कोई हादसा हो नहीं जाता।

 हर साल मासूमों को निगल रही है ऐसी लापरवाही

  • इसी साल छतरपुर के ललगुवां गांव में तीन साल की राशि एक खुले बोरवेल में गिर गई। करीब 3.40 घंटे की मशक्कत के बाद स्थानीय पुलिस ने एक रस्सी की मदद से बच्ची को बाहर खींच लिया। बच्ची कांशस थी और माता-पिता से बात कर रही थी। उन्होंने बोरवेल में डाली गई रस्सी को पकड़कर हाथ में बांधने को बोला और बच्ची ने वही किया।
  • कुछ महीनों पहले विदिशा के खेरखेरी पठार गांव में आठ साल का लोकेश अहिरवार बोरवेल में गिर गया था। वह बंदरों को भगा रहा था। बोरवेल 60 फीट गहरा था और लोकेश 43 फीट पर फंस गया। एसडीआरएफ और एनडीआरएफ ने 24 घंटे की मशक्कत के बाद उसे निकाला, लेकिन लोकेश को बचाया नहीं जा सका।
  • 27 फरवरी 2022 को दमोह जिले में सात साल का बच्चा प्रिंस 300 फीट गहरे बोरवेल में गिर गया था। वह 20 फीट पर फंस गया था। वह 6 घंटे की मशक्कत के बाद बाहर निकाल लिया गया। लेकिन उसे भी बचाया नहीं जा सका।
  • दिसम्बर 2022 में बैतूल जिले के मंडावी गांव में आठ साल का तन्मय साहू सूखे बोरवेल में गिर गया था। वह 55 फीट पर फंसा हुआ था। बचाव दल ने पोकलेन मशीनों से खुदाई कर उस तक पहुंचने के लिए सुरंग बनाई। इसमें चार दिन लग गए। उसको बाहर निकाला गया तब तक उसकी मौत हो चुकी थी।
  • 22 जून 2022 को छतरपुर के नारायणपुरा गांव में चार साल का बच्चा दीपेंद्र बोरवेल में गिरा था। बच्चा 25 फीट की गहराई में फंसा था। करीब सात घंटे की मशक्कत के बाद बचाव दल ने रस्सी के सहारे बच्चे को बाहर खींच लिया।
  • 16 दिसम्बर 2021 को छतरपुर के ही दौनी गांव में डेढ़ साल की बच्ची दिव्यांशी बोरवेल में गिरी थी। सेना और एनडीआरएफ ने 10 घंटे की मशक्कत के बाद उसे सकुशल बाहर निकाल लिया।

क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे हादसों पर

  • जिस जमीन पर नलकूप खोदा जाना है, उसके मालिक को नलकूप की खुदाई कराने के पहले अपने इलाके के संबंधित सक्षम अधिकारी अर्थात जिला कलेक्टर (जिला मजिस्ट्रेट), ग्राम पंचायत के सरपंच और अन्य वैधानिक अधिकारियों को लिखित सूचना देनी होगी।
  • नलकूप की खुदाई करने वाली सरकारी संस्था, अर्ध-सरकारी संस्था या ठेकेदार का पंजीयन जिला प्रशासन या संबंधित सक्षम अधिकारी के कार्यालय में होना चाहिए।
  • जिस स्थान पर नलकूप की खुदाई की जा रही है, उस स्थान पर साइन बोर्ड लगाया जाना चाहिए। साइन बोर्ड में नलकूप खोदने या उसका रखरखाव करने वाली एजेंसी का पूरा पता और नलकूप के मालिक या उसे काम में लाने वाली एजेंसी का विवरण दर्ज होगा।
  • नलकूप की खुदाई के दौरान उसके आसपास कंटीले तारों की फेंसिंग या अन्य उपयुक्त व्यवस्था की जानी चाहिए।
  • नलकूप के बनने के बाद उसके केसिंग पाइप के चारों तरफ सीमेंट-कान्क्रीट का प्लेटफार्म बनाया जाएगा। इसकी ऊंचाई 0.30 मीटर होनी चाहिए। प्लेटफार्म जमीन में 0.30 मीटर गहराई तक बनाना होगा।
  • केसिंग पाइप के मुंह पर स्टील की प्लेट वेल्ड की जाएगी या नट-बोल्ट से अच्छी तरह कसी होगी। इस व्यवस्था का मकसद नलकूप के मुंह के खुले रहने के कारण होने वाले संभावित खतरों से बच्चों को बचाना है। पम्प रिपेयर के समय नलकूप के मुंह को बंद रखा जाएगा।
  • नलकूप की खुदाई पूरी होने के बाद खोदे गए गड्ढे और पानी वाले मार्ग को समतल किया जाएगा।
  • यदि किसी कारणवश नलकूप को अधूरा छोड़ना पड़ता है तो उसे मिट्टी, रेत, बजरी, बोल्डर या खुदाई में बाहर निकले चट्टानों के बारीक टुकड़ों से पूरी तरह जमीन की सतह तक भरा जाना चाहिए।
  • नलकूप की खुदाई पूरी होने के बाद साइट की पुरानी स्थिति को बहाल किया जाना चाहिए।

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