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विश्व का एकमात्र शिवलिंग जहां भोलेनाथ पर चढ़ाया जाता है सिंदूर, काफी रोचक है मान्यता

 


नर्मदापुरम (चक्र डेस्क) - जिला मुख्यालय से 36 किमी दूर तिलक सिंदूर में सतपुड़ा की पहाड़ियों में स्थित गुफा के अंदर विराजमान है. एक ऐसी शिवलिंग जहां पर सिंदूर लगाने से हर श्रद्धालु की सारी मनोकामना पूर्ण होती है. जी हां… हम आज आप को बताने जा रहे है एक ऐसे शिवलिंग के बारे मे जहां इन दिनों भगतों का मेला सा लगा होता है. भगवान शंकर के सावन माह के साथ इस स्थान पर भक्तों का आना जाना लगा रहता है. यह शिवलिंग विश्व में एक मात्र ऐसा शिवलिंग है जहां फूल बेलपत्रों के साथ सिंदूर का तिलक भी लगाया जाता है. इस लिए इस स्थान का नाम भी तिलक सिंदूर हो गया. इस शिवलिंग पर सिंदूर लगाने से भगवान शिव प्रसन्न होते है.


भस्मासुर के प्रकोप से बचने छिपे थे यहां महादेव

सतपुड़ा की घनी पहाड़ियों के बीच इस स्थान पर भगवान शिव उस समय आए थे जब उन के पीछे भस्मासुर नामक राक्षस पड़ा हुआ था. भगवान शिव भस्मासुर के प्रकोप से बचने इस पहाड़ी के बीच बनी गुफा में छिप गए थे. इसके बाद बहुत समय तक भगवान शिव यहां छिपे रहे. इसके बाद भगवान ने यहां से एक ओर गुफा बनाई जो कि पचमढ़ी के जटाशंकर के पास निकली है. फिर भगवान पचमढ़ी के जटा शंकर में जा कर छिप गए थे. आज भी ये सुरंग तिलक सिंदूर से पचमढ़ी तक बनी हुई है. तिलक सिंदूर प्राचीन काल से आदिवासियों के राजा महाराजा का पूजन स्थल बना हुआ है. भगवान शिव का दूसरा घर पचमढ़ी के जटा शंकर को भी कहा जाता है.


गणेश जी जब सिंदूर नामक राक्षस का किया वध

आदिवासी समुदाय के पुजारी ने बताया कि भगवान गणेश जी ने इसी स्थान पर सिंदूर नामक राक्षस का वध किया था और उसी राक्षस के सिंदूरी खून से भगवान शंकर का अभिषेक किया गया था. तब से आज तक भगवान शिव के इस शिवलिंग पर सिंदूर लगया जाता है. ऐसा माना जाता है जो भी भगवान को भक्ति भाव से सिंदूर लगाता है उसकी सारी इच्छा पूरी हो जाती है. इसके साथ ही यह भी मान्यता है कि यह शिवलिंग ओम्कारेश्वर शिवालय के समकालीन है. जलहरी सभी जगह एक ही प्रकार की होती है, मतलब की त्रिकोणीय होती है. लेकिन इस स्थान की जलहरी ओम्कारेश्वर की तरह ही चतुष्कोणीय है. इसके साथ ही इस स्थान पर भी ओम्कारेश्वर की तरह ही इसका जल भी पश्चिम दिशा की और बहता है. जबकि दुनिया भर में सभी शिवालयों में जल उत्तर की तरफ ही बहता है.


 इस स्थान का उल्लेख तो प्राचीन ग्रंथों में भी भारतीय उपमहाद्वीप में अनोखा बताया गया है. उन्होंने ये भी बताया कि इस स्थान पर पहले सागौन, साल, महुआ, खैर आदि के पेड़ अधिक हुआ करते थे और इस स्थान को खटामा के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. इसी स्थान पर एक नदी जो कि छोटी धार बाली नदी है इसे हंसगंगा कहा जाता है जो यहां बहती है. पहले यहां जगह शाह परिवार की रियासत के एक हिस्सा माना जाता था और इस मंदिर मे पूजन करने के लिए इसी परिवार द्वारा भुमका की नियुक्ति की जाती थी. इस स्थान पर 1925 से जमानी के मालगुजार में मेले की शुरुआत की थी. इसके बाद इस स्थान को 1970 में जनपद पंचायत केसला ने टेक ओवर कर लिया था. गुफा और मंदिर यहां अतिप्राचीन है और फिर 1971 में यहां पर माता पार्वती के महल का निर्माण हुआ था. बमबम बाबा और बहुत से सिद्ध पुरषों की ये तपोस्थली भी रह चुकी है.


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