भोपाल (सागर मेहता) - 19 साल पहले बंद हुए मध्य प्रदेश के सड़क परिवहन निगम की बसों की सफर की सुविधा फिर जनता को मिलेगी। कभी प्रदेश के रीढ़ की धड़कन कहे जाने वाले 29 हजार करोड़ रुपये संपत्ति वाले इस निगम के पुनर्जीवित करने की कवायद भी शुरू हो गई है। साथ ही सवालों के साथ सियासत भी जमकर बोल रही है। अफसरों की मानें तो साल 2005 में सरकार ने निगम की तालाबंदी कर दी थी। लेकिन सरकारी गजट नोटिफिकेशन जारी नहीं किया गया था। केंद्र और राज्य सरकार के संयुक्त अंशदान पर चलने वाले इस निगम को बंद करने के लिए केंद्रीय मंत्रालय की ही स्वीकृति नहीं ली गई थी। जबकि जब सड़क परिवहन निगम में कुल सात सौ बसों के साथ 11 हजार 500 कर्मचारी कार्यरत थे। परिवहन निगम के संचालन के लिए राज्य सरकार से 70.5 तो केंद्र सरकार से 29.5 फीसदी की हिस्सेदारी भी तय थी। केंद्र ने अपनी हिस्सेदारी को समय पर निभाया था। तब राज्य ने अपने हिस्से के अंशदान से हाथ खींचे थे। शहरी विकास की अवधारणा में यह बात भी कही जाती है कि किसी विकसित प्रदेश के बेहतर भविष्य और विकास का आधार ही लोक परिवहन की आधार शिला के बिना अधूरी होता है। लेकिन, मध्यप्रदेश में तो सिर्फ मामले को लेकर सियासतदारों के बयानी जंग ही दिखाई दी।
शिवराज सिंह चौहान का कार्यकाल ही निगम के लिए काल का था: कांग्रेस
दुर्गति से अब गतिमान हो रहे मध्यप्रदेश सड़क परिवहन निगम को लेकर नेता उलझे-उलझाने में व्यस्त हैं। कांग्रेस का कहना है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कार्यकाल ही निगम के लिए काल का था। कांग्रेस के विचार विमर्श विभाग प्रमुख भूपेंद्र गुप्ता कहते हैं कि परिवहन निगम का बंटाधार तो शिवराज सरकार ने किया और ठीकरा हमारे सर। यही है बीजेपी की राजनीति का तरीका। झूठ बोलो, बार-बार बोलो और जोर से बोलो। भारत में ऐसा कोई राज्य नहीं जहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम नहीं है। बस इकलौता हमारा मध्यप्रदेश है, जहां बस ही सरकार को रास न आई। गुप्ता ने यह भी कहा कि निजी परिवहन कंपनियों से लूटती जनता को देख सरकार 19 साल बाद ही आखिर क्यों जागी? फिर इसी सवाल का जवाब देते हुए कहा कि यहां भी कमीशन का मामला फिक्स होगा।
उधर, बीजेपी ने निगम की बद से बदतर हुए हालात और तालाबंदी का कसूरवार तत्कालीन दिग्विजय सिंह सरकार को ठहराया। कांग्रेस के आरोपों को नकारते हुए प्रदेश प्रवक्ता शिवम शुक्ला ने बताया कि दरअसल, सड़क परिवहन निगम की बदहाली और बंटाधार का कारण ही बंटाधार सरकार थी। तब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार हुआ करती थी और तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का शासनकाल। जमकर धांधली को अंजाम दिया गया। साथ ही धीरे-धीरे कांग्रेस सरकार निगम को खा गई। नसीहत इस बात की भी दी कि इतिहास के पन्नों के साथ जरा कांग्रेस नेता सरकारी कागजातों को भी समझना सीखें। इस निगम को नए कलेवर में शुरुआत कर मोहन सरकार प्रदेश को नई सौगात देंगे।
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